Thursday, April 9, 2009

दोस्त!

एक दोस्त की तलाश में,

आज भी अपने आप को आजमाता हूँ,

जहाँ देखी भीड़,

दौड़के पहुँच जाता हूँ,

सोचता हूँ कोई तो जाना पहचाना सा चेहरा दिख जाए,

कोई तो हो वहां जिसको हम याद जाए,

पर सब कुछ रुखा सा, अनजाना सा लगता हैं...

कुछ नही अपना, सब बेगाना सा लगता हैं,

सामने मिलती हैं वो सुखी नज़रें,

जिनमें भयानक सी हँसी छिपी हैं,

जो हँसती हैं मेरी बेबसी पर, मेरी तन्हाई पर ,

भीड़ में हैं वो लोग...

जो कहने को दोस्त, पर दुश्मन से बद्दतर है,

जिनकी ज़बान पे प्यार, और हाथ में खंजर हैं,

चेहरे पे हसी, पर दिल में कुछ और,

प्यार भरे शब्दों में अपनी नफरत छिपाके

मुझे अपने साथ रखते हैं, बुलाते हैं

पहले जानता नहीं, पर अब,

उन्हें देखके डर सा लगता हैं,

भाग जाऊँ यहाँ से, सिर्फ़ यह ख्याल मन में चलता हैं,

पर...

इतनी हिम्मत नही मुझमें, इतनी हिम्मत नहीं!



मैं...

नज़रें झुकाके चल देता हूँ अपने कमरे की ओर

पीछे उस भयानक हँसी की गूंज सुनाई पड़ती हैं,

सभी खुश हैं अपनों के साथ, फ़िर भी हैं एक दुसरे के ख़िलाफ़,

सभी जानते हैं यह, सभी मानते हैं यह,

सिर्फ़ मैं ही अनाडी था, समझ नहीं पाया....

दोस्त बनाने चला था, पर हमेशा की तरह

मुंह की खाया...

खैर...

चलते हुए उस हँसी को सुनके,

अपने अन्दर एक चीख का एहसास होता हैं



दिल में एक टीस सी उठती हैं

आँखें भर सी आती हैं ...सब कुछ धुंधला लगता हैं,

किसी तरह कदम संभलके कमरे में पहुँचता हूँ

बिस्तर पे लेट के हर दिन को कोसता हूँ

एक बार नही यह बार बार होता हैं

दिल हर बार यह सहके रोता हैं....

यह पता हैं शिकायत भी नहीं कर सकता ख़ुदा से,

इसमें किसी का दोष नहीं

पर

कौन समझाए इस दिल को,

कौन रोके इसकी तलाश...

क्योंकि

जिस दोस्त की तलाश इसको हैं,

वो तो कब का मर चुका हैं!



Regards,

Kunal Lodha

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